Class 10 Hindi साखी Question Answer PDF summary with detailed explanation of the lesson ‘Saakhi’ along with meanings of difficult words. Given here is the complete explanation of the lesson (व्याख्या), along with summary काव्य सौंदर्य and all the exercises (अभ्यास प्रश्न), Extra MCQs For Exam.
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Class 10 Hindi साखी Question Answer PDF
१. साखी
“साखी” शब्द का मूल रूप “साक्षी” से आया है। यह “प्रत्यक्ष ज्ञान” को संदर्भित करता है, जो गुरु शिष्य के बीच ज्ञान का प्रसार करता है। संत संप्रदाय में अनुभव ज्ञान की महत्ता है, जो कबीर के अनुभवों में प्रकट होती है। उनकी साखियों में विभिन्न भाषाओं का प्रभाव दिखाई पड़ता है, जिसे “पचमेल खिचड़ी” कहा जाता है। “साखी” दोहा छंद का उत्कृष्ट उदाहरण है, जो जीवन के तत्वज्ञान की शिक्षा देता है और याद रहने योग्य होता है।
कवि परिचय
कबीरदास जी का जन्म 1398 में काशी में हुआ था । इनके गुरु रामानंद थे। ये क्रांतदर्शी के कवि थे जिनके कविता से गहरी सामाजिक चेतना प्रकट होती है। इन्होने 120 वर्ष की लम्बी उम्र पायी। इन्होने आने जीवन के कुछ अंतिम वर्ष मगहर में बिताये और वहीँ चिर्निद्रा में लीन हो गए।
काव्य प्रकार
साखी एक दोहा है। दोहा एक प्रकार का छंद जिसके प्रथम और तृतीय चरण में 13-13 तथा द्वितीय चरण में 11-11 मात्राएँ होती हैं ।
शब्दार्थ
बाँणी | – | बोली |
आपा | – | अहं (अहंकार) |
कुंडलि | – | नाभि |
घटि घटि | – | घट-घट में / कण-कण में |
भुवंगम | – | भुजंग / साँप |
बौरा | – | पागल |
नेड़ा | – | निकट |
आँगणि | – | आँगन |
साबण | – | साबुन |
अषिर | – | अक्षर |
पीव | – | प्रिय |
मुराड़ा | – | जलती हुई लकड़ी |
साखी भावार्थ व व्याख्या
ऐसी बाँणी बोलिए मन का आपा खोई।
अपना तन सीतल करै औरन कैं सुख होई।।
कबीरदास जी कहते है कि हमे ऐसी वाणी बोलनी चाहिए जो हमारे हृदय के अहंकार को मिटा दे अर्ताथ जिसमे हमारा अहंकार न झलकता हो , जो हमारे तन को भी ठंडक प्रदान करे तथा दुसरो को भी सुख प्रदान करे । तात्पर्य यह कि हमारे तन को शीतलता प्रदान करे तथा सुनने वाले को भी मानसिक सुख प्रदान करे ।
कला पक्ष:
1. सहज एवं सरल भाषा का प्रयोग किया गया है। भाषा भावाभिव्यक्ति में सक्षम है। 2. ‘बाँगी बोलिए! में अनुप्रास अलंकार है। 3. सधुक्कड़ी भाषा का प्रयोग किया गया है।
कस्तूरी कुण्डली बसै मृग ढ़ूँढ़ै बन माहि।
ऐसे घटी घटी राम हैं दुनिया देखै नाँहि॥
कबीरदास जी उदाहरण द्वारा ईश्वर की महत्ता स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि कस्तूरी तो हिरन की नाभि में स्थित होती है, परंतु वह उसे वन में ढूँढ़ता पिफरता है अर्थात वह अपने अंदर बसी कस्तूरी को नहीं पहचान पाता है। यही स्थिति मनुष्य की भी है।
ईश्वर तो प्रत्येक हृदय में निवास करता है और मनुष्य उसे इध्र-उध्र ढूँढ़ता पिफरता है अर्थात मनुष्य अपने भीतर ईश्वर को न ढूँढ़कर उसे प्राप्त करने के लिए स्थान-स्थान पर यानी मंदिर-मस्जिद में भटकता रहता है।
भाव पक्षः
1. कबीर ने ईश्वर का स्थायी निवास मनुष्य के हृदय को ही बताया है।
2. मृग का उदाहरण देकर बात को पूर्ण रूप से स्पष्ट किया गया है।
कला पक्षः
1. सरल एवं सहज सधुक्कड़ी भाषा का प्रयोग किया गया है।
2. “कस्तूरी-कुण्डली …….. दुनिया-देखै’ में अनुप्रास अलंकार है।
3. ‘घटि-घटिः’ में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।
जब मैं था तब हरि नहीं अब हरि हैं मैं नाँहि।
सब अँधियारा मिटी गया दीपक देख्या माँहि॥
कबीरदास जी कहते हैं कि जब तक मेरे अंदर अहंकार था, तब तक मुझे ईश्वर की प्राप्ति नहीं हुई थी। अब जब कि मेरे अंदर का अहं मिट चुका है, तब मुझे ईश्वर की प्राप्ति हो गई है। जब मैंने ज्ञान रूपी दीपक के दर्शन कर लिए, तब अज्ञान रूपी अंध्कार मिट गया अर्थात अहं भाव को त्याग कर ही मनुष्य को ईश्वर की प्राप्ति हो सकती है।
भाव पक्षः
1. इसमें ईश्वर-प्राप्ति का उपाय बताया गया है।
2. ‘अहं’ भाव को ईश्वर-प्राप्ति में वाध्क बताया गया है।
कला पक्षः
1. “मैं! शब्द अहंभाव के लिए प्रयोग किया गया है।
2. हरि है’, “दीपक देख्या’ में अनुप्रास अलंकार है।
3. “अँध्यारा’ अज्ञान का प्रतीक है और ‘दीपक’ ज्ञान का प्रतीक
सुखिया सब संसार है, खायै अरू सोवै।
दुखिया दास कबीर है, जागै अरू रोवै।।
कबीरदास जी कहते हैं कि यह संसार सुखी है क्योंकि यह केवल खाने और सोने का काम करता है अर्थात सब प्रकार की चताओं से परे है। इनमें दुखी केवल कबीरदास हैं क्योंकि वे ही जागते हैं और रोते हैं। आशय यह है कि सांसारिक सुखों में व्यस्त रहने वाले व्यक्ति सुखपूर्वक समय व्यतीत करते हैं और जो प्रभु के वियोग में जागते रहते हैं, उन्हें कहीं भी चैन नहीं मिलता। वे तो केवल संसार की दशा देखकर रोते रहते हैं। चिंतनशील मनुष्य कभी भी चैन की नींद नहीं सो सकता।
भाव पक्षः
1. चिंतनशील मनुष्य की व्याकुलता को प्रकाशित किया गया है।
कला पक्षः
1. भाषा सहज-सरल है और भावाभिव्यक्ति में सक्षम है।
2. सुखिया सब संसार, “दुखिया दास में अनुप्रास अलंकार है।
3. सधुक्कड़ी भाषा का प्रयोग हुआ है।
बिरह भुवंगम तन बसै मन्त्र न लागै कोई।
राम बियोगी ना जिवै जिवै तो बौरा होई।।
कबीरदास जी विरही मनुष्य की मनःस्थिति की चर्चा करते हुए कहते हैं कि विरह रूपी सर्प शरीर में निवास करता है। उस पर किसी प्रकार का उपाय या मंत्र भी असर नहीं करता। उसी प्रकार राम यानी ईश्वर के वियोग में मनुष्य भी जीवित नहीं रह सकता। यदि वह जीवित रह भी जाता है तो उसकी स्थिति पागल व्यक्ति जैसी हो जाती है।
भाव पक्षः
1. राम-वियोगी मनुष्य की दशा का मार्मिक चित्राण किया गया है।
2. विरह की तुलना सर्प से की गई है।
कला पक्षः
1. भाषा सरस-सरल और भावाभिव्यक्ति में सक्षम है।
2. “बिरह भुवंगम” में रूपक अलंकार का प्रयोग किया गया है।
3. सधुक्कड़ी भाषा का प्रयोग किया गया है।
निंदक नेड़ा राखिये, आँगणि कुटी बँधाइ।
बिन साबण पाँणीं बिना, निरमल करै सुभाइ॥
कबीरदास जी कहते हैं कि निंदा करने वाले व्यक्ति को अपने पास रखना ही चाहिए, हो सके तो उसे अपने आँगन में कुटिया ‘झोंपड़ी’ बनाकर रखना चाहिए। वह हमें साबुन और पानी के प्रयोग के बिना ही हमारे स्वभाव को स्वच्छ कर देता है अर्थात अपनी निंदा सुनकर हम अपनी त्राुटियों को सुधर लेते हैं। इससे हमारी स्वभावगत बुराइयाँ दूर हो जाती हैं।
भाव पक्षः
1. इसमें निंदक के महत्व को दर्शाया गया है।
2. निंदक को अपना परम हितैषी समझना चाहिए।
कला पक्षः
1. भाषा सहज एवं सरल है तथा भावाभिव्यक्ति में सक्षम है।
2. “निंदक-नेड़ा” में अनुप्रास अलंकार है।
3. सधुक्कड़ी भाषा का प्रयोग किया गया है।
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुवा, पंडित भया न कोइ।
एकै अषिर पीव का, पढ़ै सु पंडित होइ॥
कबीरदास जी कहते हैं कि यह संसार पुस्तकें पढ़-पढ़ कर मृत्यु को प्राप्त हो गया, परंतु अभी तक कोई भी पंडित नहीं बन सका। यदि मनुष्य ईश्वर-भक्ति का एक अक्षर भी पढ़ लेता तो वह अवश्य ही पंडित बन जाता अर्थात ईश्वर ही एकमात्र सत्य है, इसे जानने वाला ही वास्तविक ज्ञानी और पंडित होता है।
भाव पक्षः
1. ईश्वर-प्रेम तथा ईश्वर-भक्ति से ही ज्ञान-प्राप्ति होती है।
2. पुस्तकों को पढ़कर “रट कर ज्ञान प्राप्त करना संभव नहीं है।
कला पक्षः
1. भाषा सहज एवं सरल है तथा भावाभिव्यक्ति में सक्षम है।
2. “पोथी पढ़ पढ़” में अनुप्रास अलंकार है।
3. सधुक्कड़ी भाषा का प्रयोग जकया गया है।
हम घर जाल्या आपणाँ, लिया मुराड़ा हाथि।
अब घर जालौं तास का, जे चलै हमारे साथि॥
कबीरदास जी कहते हैं कि हमने पहले अपना घर जलाया, पिफर जलती हुई लकड़ी को हाथ में ले लिया। अब हम उसका घर जलाएँगे, जो हमारे साथ चलेगा अर्थात पहले हम ने अपने घर की बुराइयाँ नष्ट की और अब हम अपने साथियों की बुराइयाँ दूर करके ज्ञान का प्रकाश फैलाने चल पड़े हैं।
भाव पक्षः
1. कबीरदास जी समाज को सुधरने का महान कार्य करना चाहते हैं।
2. वे चारों ओर ज्ञान की ज्योति प्रज्ज्वलित करना चाहते हैं।
कला पक्षः
1. भाषा सहज एवं सरल है तथा भावाभिव्यक्ति में सक्षम है।
2. घर एवं मशाल का प्रतीकात्मक प्रयोग किया गया है।
3. सधुक्कड़ी भाषा और प्रतीकात्मक शैली का प्रयोग किया गया है।
Class 10 Hindi साखी Question Answer प्रश्न – अभ्यास
(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
1. मीठी वाणी बोलने से औरों को सुख और अपने तन को शीतलता कैसे प्राप्त होती है?
मीठी वाणी का प्रभाव चमत्कारिक होता है। मीठी वाणी जीवन में आत्मिक सुख व शांति प्रदान करती है। मीठी वाणी मन से क्रोध और घृणा के भाव नष्ट कर देती है। इसके साथ ही हमारा अंतःकरण भी प्रसन्न हो जाता है। इसके प्रभाव स्वरुप औरों को सुख और शीतलता प्राप्त होती है। मीठी वाणी के प्रभाव से मन में स्थित शत्रुता, कटुता व आपसी ईर्ष्या द्वेष के भाव समाप्त हो जाते हैं।
2. दीपक दिखाई देने पर अँधियारा कैसे मिट जाता है? साखी के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए।
कवि के अनुसार जिस प्रकार दीपक के जलने पर अंधकार अपने आप दूर हो जाता है और उजाला फैल जाता है। उसी प्रकार ज्ञान रुपी दीपक जब हृदय में जलता है तो अज्ञान रुपी अहंकार का अंधकार मिट जाता है। यहाँ ‘दीपक’ ज्ञान के प्रकाश का प्रतीक है और ‘अँधियारा’ अज्ञान का प्रतीक है। मन के विकार अर्थात् अहंकार, संशय, क्रोध, मोह, लोभ आदि नष्ट हो जाते हैं, तभी उसे सर्वव्यापी ईश्वर की प्राप्ति भी होती है।
3. ईश्वर कण-कण में व्याप्त है, पर हम उसे क्यों नहीं देख पाते?
ईश्वर सब ओर व्याप्त है। वह निराकार है। हमारा मन अज्ञानता, अहंकार, विलासिताओं में डूबा है। इसलिए हम उसे नहीं देख पाते हैं। हम उसे मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा सब जगह ढूँढने की कोशिश करते हैं लेकिन जब हमारी अज्ञानता समाप्त होती है हम अंतरात्मा का दीपक जलाते हैं तो अपने ही अंदर समाया ईश्वर हम देख पाते हैं।
4. संसार में सुखी व्यक्ति कौन है और दुखी कौन? यहाँ ‘सोना’ और ‘जागना’ किसके प्रतीक हैं? इसका प्रयोग यहाँ क्यों किया गया है? स्पष्ट कीजिए।
कबीर के अनुसार जो व्यक्ति केवल सांसारिक सुखों में डूबा रहता है और जिसके जीवन का उद्देश्य केवल खाना, पीना और सोना है। वही व्यक्ति सुखी है। कवि के अनुसार ‘सोना’ अज्ञानता का प्रतीक है और ‘जागना’ ज्ञान का प्रतीक है। जो लोग सांसारिक सुखों में खोए रहते हैं, जीवन के भौतिक सुखों में लिप्त रहते हैं, वे सोए हुए हैं।
जबकि जो सांसारिक सुखों को व्यर्थ समझते हैं, अपने को ईश्वर के प्रति समर्पित करते हैं, वे ही जागते हैं। ज्ञानी व्यक्ति जानता है कि संसार नश्वर है फिर भी मनुष्य इसमें डूबा हुआ है। यह देखकर वह दुखी हो जाता है। वे संसार की दुर्दशा को दूर करने के लिए चिंतित रहते हैं, सोते नहीं है अर्थात जाग्रत अवस्था में रहते हैं।
5. अपने स्वभाव को निर्मल रखने के लिए कबीर ने क्या उपाय सुझाया है?
कबीर का कहना है कि स्वभाव को निर्मल रखने के लिए मन का निर्मल होना आवश्यक है। हम अपने स्वभाव को निर्मल, निष्कपट और सरल बनाए रखना चाहते हैं तो हमें निंदक को अपने आँगन में कुटिया बनाकर रखना चाहिए। निंदक हमारे सबसे अच्छे हितैषी होते हैं। उनके द्वारा बताई गई त्रुटियों को दूर करके हम अपने स्वभाव को निर्मल बना सकते हैं।
6 ‘ऐकै अषिर पीव का, पढ़े सु पंडित होई’ इस पंक्ति द्वारा कवि क्या कहना चाहता है?
कवि इस पंक्ति द्वारा शास्त्रीय ज्ञान की अपेक्षा भक्ति व प्रेम की श्रेष्ठता को प्रतिपादित करना चाहते हैं। ईश्वर को पाने के लिए एक अक्षर प्रेम का अर्थात् ईश्वर के नाम का एक अक्षर लेना ही पर्याप्त है। लोगों ने बड़ी – बड़ी पोथी या ग्रंथ पढ़े पर उनमें से कोई भी पंडित नहीं बन सका, किंतु परमात्मा नाम का केवल एक अक्षर स्मरण करने से ही सच्चा ज्ञानी वना जा सकता है। इसके लिए मन को सांसारिक मोह-माया से हटा कर ईश्वर भक्ति में लगाना पड़ता है।
7. कबीर की उद्धृत साखियों की भाषा की विशेषता स्पष्ट कीजिए।
कबीर का अनुभव क्षेत्र विस्तृत था। कबीर जगह-जगह भ्रमण कर प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त करते थे। अतः उनके द्वारा रचित साखियों में अवधी, राजस्थानी, भोजपुरी और पंजावी भाषाओं के शब्दों का प्रभाव स्पष्ट दिखाई पडता है। इसी कारण उनकी भाषा को ‘पचमेल खिचड़ी’ कहा जाता है। कबीर की भाषा को ‘सधुक्कड़ी’ भी कहा जाता है। वे जैसा बोलते थे उनके काव्य संग्रह ‘साखी’ में वैसा ही लिखने का प्रयास किया गया है । कबीर की भाषा में लयबद्धता, उपदेशात्मकता, प्रवाह, सहजता, सरलता शैली है। लोकभाषा का भी प्रयोग हुआ है; जैसे खाये, नेड़ा, मुवा, जाल्या, ऑगणि आदि।
(ख) निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए-
१. बिरह भुवंगम तन बसे, मंत्र न लागै कोइ।
कबीरदास कहते हैं कि विरह-व्यथा विष से भी अधिक मारक है। विरह का सर्प शरीर के अंदर निवास कर रहा है, जिस पर किसी तरह का मंत्र लाभप्रद नहीं हो पा रहा है। सामान्यतः साँप बाह्य अंगों को डसता है, जिस पर मंत्रादि कामयाब हो जाते हैं किन्तु राम से विरह का सर्प तो शरीर के अंदर प्रविष्ट हो गया है, वहाँ वह लगातार डसता रहता है। कवि कहते हैं कि जिस व्यक्ति के हृदय में ईश्वर के प्रति प्रेम से विरह का सर्प बस जाता है, उस पर कोई मंत्र असर नहीं करता है, अर्थात् भगवान के विरह में कोई भी जीव या तो जीवित नहीं रहता है या पागल हो सकता है।
2. कस्तूरी कुंडलि बसे, मृग ढूँढे बन माँहि।
इस पंक्ति में कवि कहता है कि जिस प्रकार मृग की नाभि में कस्तूरी रहती है किन्तु वह उसे जंगल में ढूँढ़ता है। उसी प्रकार मनुष्य भी अज्ञानतावश वास्तविकता को नहीं जानता कि ईश्वर हर घट अर्थात् देह या कण-कण में निवास करता है और उसे प्राप्त करने ढूँढ़ता रहता है। धार्मिक स्थलों, अनुष्ठानों में ढूँढ़ता रहता है।
3. जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाँहि।
इस पंक्ति द्वारा कवि का कहना है कि जब तक यह मानता था कि ‘मैं हूँ’ अर्थात् मेरे मन में अहंकार था तब तक मुझे भगवान् की प्राप्ति नहीं हुई और जब भगवान् की प्राप्ति हो गई है, तो अव मेरे मन का मैं (अहंकार) नहीं रहा। अँधेरा और उजाला एक साथ, एक ही समय, कैसे रह सकते हैं? जब तक मनुष्य में अज्ञान रुपी अंधकार छाया है, वह ईश्वर को नहीं पा सकता। अर्थात् अहंकार और ईश्वर का साथ-साथ रहना असंभव है। यह भावना दूर होते ही वह ईश्वर को पा लेता है।
4. पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुवा, पंडित भया न कोइ।
कवि के अनुसार बड़े-बड़े ग्रंथ, शास्त्र पढ़ने भर से कोई ज्ञानी नहीं होता, अर्थात् ईश्वर की प्राप्ति नहीं कर पाता। प्रेम से ईश्वर के नाम का स्मरण करने से ही उसे प्राप्त किया जा सकता है। प्रेम में बहुत शक्ति होती है। जो अपने प्रिय परमात्मा के नाम का केवल एक अक्षर भी जपता है (या प्रेम का एक अक्षर भी पढ़ लेता है) वही सच्चा ज्ञानी (पंडित) होता है। वही परमात्मा का सच्चा भक्त होता है।
Class 10 Hindi Chapter 1 Saakhi MCQs बहुविकल्पीय प्रश्न
(क) जब शरीर में किसी से विछुरने का दुःख हो तो कोई दवा या मन्त्र काम नहीं करता
(ख) मन्त्र जपने से सेहत अच्छी होती है
(ग) जब दुःख हो तो मन्त्र काम करते हैं
(घ) कोई नहीं
(क) मोती पुस्तके पढ़ने वाला
(ख) मोटी पुस्तके पढ़ने वाला
(ग) दूसरों को ज्ञान देने वाला
(घ) अज्ञानी
(क) कोई भी नहीं
(ख) बादल दूर होते हैं
(ग) अहंकार रूपी माया दूर होती है जब ज्ञान रूपी दीपक दिखाई देता है
(घ) माया दूर होती है जब ज्ञान रूपी दीपक दिखाई देता है
(क) सांसारिक लोग जो सोते और खाते हैं
(ख) आध्यात्मिक लोग
(ग) लालची लोग
(घ) सांसारिक लोग जो खाते हैं
(क) निंदक को नमस्ते करने को कहा है
(ख) निंदक से दूर रहने को कहा है
(ग) निंदक पास रखने को कहा है
(घ) निंदा पास रखने को कहा है
(क) 1398 में
(ख) 1321 में
(ग) 1354 में
(घ) 1395 में
(क) 13 और 11 के विश्राम से 28 मात्रा
(ख) 12 और 11 के विश्राम से 24 मात्रा
(ग) 12 और 11 के विश्राम से 28 मात्रा
(घ) 13 और 11 के विश्राम से 24 मात्रा
(क) अवधी
(ख) राजस्थानी
(ग) भोजपुरी और पंजाबी
(घ) सभी
(क) प्रत्यक्ष ज्ञान
(ख) साक्ष्य ज्ञान
(ग) सांसारिक ज्ञान
(घ) मायावी ज्ञान की
(क) साक्षी
(ख) साखी
(ग) सखि
(घ) साक्ष्य